गुलाब की पंखुड़ी
गुलाब की एक पंखुड़ी
मिल गई अचानक
जमीन पर पड़ी
पर खिली
सुगन्धि यथावत
हाथ लगी
तो
महक उठे हाथ
चहक उठी वो
तुम ही तो थे
जिसकी थी तलाश
युगों-युगों से
गिरी रही
पड़ी रही
पर
मरी नहीं
खिली रही
तुम्हारे ही इंतज़ार में
मिट्टी में मिली नहीं
धूल में सनी नहीं
बरकरार रही
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुम न आते
तब भी
आँखें खुली ही रहतीं
द्वार पर लगी रहतीं
तुम ही तो हो मेरा वजूद
तुम बिन मैं
कहाँ हूँ गुलाब
खो देती रंग
खो देती आब
अब आ गए हो
तो ले लो मुझे
खो जाऊँ
सो जाऊँ
पलक मूँद कर
जागी हूँ युगों-युगों
सिर्फ तुम्हारे
अब सो जाऊँगी
तुम्हारी हो जाऊँगी